फरवरी का महीना था । पिताजी को गुजरे एक साल होने को था । अवसान से बाहर नहीँ आ पायी थी अभी तक । बहुत सारे अधूरे कामों के साथ एक पुस्तक(विचारों की जय यात्रा) अधूरी छोड़ गये थे पिताजी । जब बात होती तो कहते इस किताब का विमोचन अटल जी करेंगे । पर पुस्तक अधूरी छोड़ पिताजी एकाएक चले गये । clinic पर खिड़की से बाहर ताकते हुए पता नहीँ क्या सूझा और अपने डॉक्टर वाले लेटर पैड पर हाथ से ही माननीय अटल जी , जो तब प्रधानमंत्री थे लिखकर पुस्तक(विचारों की जय यात्रा) के विमोचन का आग्रह कर डाला । एक सप्ताह बाद PMO से फ़ोन आ गया , \” दिव्या जी , आपने डॉ नागपाल की पुस्तक के विमोचन के लिये पत्र भेजा था , माननीय प्रधानमंत्री जी ने आग्रह करा है कि आप PMO आकर वो विमोचन करवा सकते हैं । आप कब आना चाहेंगी ? मैने कहा , 2 मार्च को पिताजी की पहली पुण्यतिथि है क्या ये तब सम्भव होगा । जवाब आया पूछ के आपको फ़ोन करता हूं । दो दिन बाद फिर फ़ोन आया , दिव्या जी , आप दो मार्च को अपने 10 सदस्यों के साथ PMO पर सादर आमन्त्रित हैं , माननीय प्रधानमंत्री जी पुस्तक का विमोचन करेंगे ।
ये थी अटल जी की महानता ! अपने पुराने संगी साथी को भूले नहीं थे वो । मुझे ध्यान है अनेकों बार उनका इंदौर आना होता और पिताजी के घर पर रात को भोजन पर उनकी बातें , विचार और ठहाके !! अनेकों बार पारिवारिक माहौल में गप्पें होती थीं ।
पिताजी को UPSC मेम्बर बनाने में भी अटल जी का ही आशीर्वाद था । माननीय अटल जी , सुदर्शन जी और पिताजी का साथ बहुत पुराना था ।
शायद उन्हीं दिनों को याद रखते हुए हमें PMO आने का न्योता भी मिल गया था ।
पूरे follow up के बाद पुस्तक लेकर 10 लोग PMO पहुंचे । इस टीम में , सुमित्रा ताई , विक्रम वर्मा जी , वेदप्रताप वैदिक जी , माँ , उनके प्रिय प्रोफ संजय जैन जी जिन्होने पुस्तक को मूर्त रूप देने का जटिल कार्य करा था , पुस्तक के प्रकाशक मेद्तिया जी और तत्कालीन महापौर और मेरी मित्र डॉ ऊंमा शशी शर्मा जी , मैं और मेरे पति थे । निर्धारित समय पर हमें अन्दर बुलाया गया । ससम्मान आलिशान कमरे में चाय पिलवाई गयी । और फिर एक कमरे में ले जाया गया जहाँ माननीय अटल जी पहले से ही विराजित थे । अद्भुत क्षण थे । बहुत प्रसन्न हुए सब को मिलकर । उन्होंने पुस्तक (विचारों की जय यात्रा) का विमोचन करा । मेरे स्मृति में वो अशृपूरित क्षण आज भी जीवित है । एक ओर मेरे पिता की इच्छा पूरी हो रही थी और दूसरी ओर मैं उन्हें बहुत मिस्स कर रही थी ।
अटल जी ने बहुत पुरानी यादें साझा करी । पिताजी की बहुत तारीफ करी । मैने आग्रह करा कि आप इस किताब पर मुझे कुछ लिख कर दें । अटल जी ने बहुत सरलता से मेरा आग्रह स्वीकारा और लिख दिया । फिर सभी ने आग्रह करा । उन्होने सभी का मान रखा । सभी को कुछ नया और सुन्दर लिख कर दिया ।
बाहर श्रीलंका का कोई delegation आया हुआ था जो इन्तजार कर रहा था पर अटल जी हमारे साथ हंसी मजाक कर रहे थे ।
जब हम सब बाहर आये तो सब मौन थे । बहुत देर तक । एक महान पुरुष जिसने किसी को ये एक मिनिट भी ये महसूस नहीं होने दिया कि प्रधान-मंत्री से अभी अभी 45 मिनिट का लम्बा समय बिता कर आये हैं ।
फिर कृष्णा मेनन मार्ग के बंगले में वे शिफ्ट हो गये । मेरा सौभाग्य कि मैं वहाँ भी उनसे मिलने जाती रही । मुझे सहज समय मिल जाता था । खूब गप्पें होती थीं । बहुत खुश होते जब मैं इंदौर का नमकीन ले जाती । कहते थे इनको उबला खाने में मज़ा नहीं आता । एक दिन मैने पूछा कि डॉ नागपाल स्मृति व्याख्यान में आपको सब सुनना चाहते हैं । बोले आ नहीं सकता अब । स्वास्थ्य साथ नहीं देता । वीडियो कॉन्फ्रेंस कर दूँ । अरे वाह , ये तो बहुत बढिया हो जायेगा ।
पर ये सम्भव न हो सका । ऑफ़िस से फ़ोन आया , मैडम अब स्वास्थ्य और गिर गया है ।
मेरे लिये ये सपना अधूरा रहा ।
फिर मिलने के लिये भी मना हो गया ।
पर जो स्मृतियां हैं वो बहुत सारी हैं बहुत प्यारी हैं ।
एक महान व्यक्तित्व , अटल जी , हमारे स्मृति पटल पर अटल रहेंगे ।