गोपालदास नीरज….कविता भी होगी पर नीरज न होंगे ।

गोपालदास नीरज…. मूर्धन्य कवि के जाने से हिंदी कविता के महान युग का अंत हुआ है । अब न वैसे कवि रहे , न वैसे हिंदी और उर्दू को खूबसूरती से शब्दों में पिरोने वाले कवि रहे ,और ना ही वैसे ज़िंदादिल इंसान रहे ।\"\"
मुझे याद आ गए वो दिन जब पिताजी के बरामदे में मूढ़े होते थे , कोई महान कुर्सियां नहीं । उन्हीं मूढ़ों पर महफ़िल जम जाती थी । नीरज जी की याद मुझे उन्हीं दिनों से है । उनका घर आना । गहरी , भरी आवाज़ में बातें करना । खूब हंसी ठिठोली होती थी । कभी कभी गंभीर चिंतन भी । बहुत बहुत देर तक उनसे मिलने वाले आते और महफ़िल और लम्बी हो जाती । मुझे अपने पास बैठाते । कुछ कठिन उर्दू का शब्द बोलते तो मुझसे पूछते समझ आया ? मेरी छोटी सी मुंडी नहीं के लिए हिल जाती । फिर वो समझाते , मिसालें देते । फिर खाने का दौर चलता । उन्हें मेरे पिताजी से एक बहुत बड़ी शिकायत थी । बोलते , \” यार ओम , तुम पीते क्यों नहीं हो ? मेरा गला सूखा का सूखा रह जाता है \” । फिर एक बार में , उस मौसम की तैयार हुई गाजर की कांजी पिलाई । बस फिर क्या था । उस कांजी की तारीफ होती और गिलास पर गिलास पिये जाते । आज भी मेरे लिए गाजर की कांजी और नीरज जी एकरस हैं । वर्षों बाद आनंदमोहन माथुर जी के घर फिर उनसे मुलाकात हुई । मुझे लगा बस अब शायद ये आखिरी होगा । चलने की दिक्कत , बैठने की दिक्कत के बावजूद जब माइक के आगे जो बैठे तो वो सारी दिक्कत गायब थी । सामने था एक महान शायर , कवि और अनवारत बहते शब्द ।

लेकिन क्या जिजीविषा । मेरी फिर मुलाक़ात हुई उनसे सुभाष खंडेलवाल जी के घर । एक सुहानी सी छोटी सी स्नेह भरी मुलाक़ात । जब उन्होंने फिर वही पुराने दिन याद करे । पिताजी को बहुत याद करा , \” ओम जैसे लोग बार बार नहीं आते \” बहुत आशीर्वाद दिया । बहुत खुश हुए । और बाहर जाकर फिर जो धाराप्रवाह गीतों की गंगा बही तो मौसम की तरह सब की आत्मा को तर बतर कर गयी । नीरज जैसा न कोई हुआ है न कोई होगा । विरले होते है ऐसे लोग जो फूलों के रंग से और दिल की कलम से लिखते हैं। कवि सम्मेलन अब सिर्फ हंसी ठिठोली के ठीये बनते जा रहे हैं । कवि सम्मेलन भी होंगे , कवि भी होंगे , कविता भी होगी पर नीरज न होंगे ।

शत शत नमन

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