स्वामी विवेकानंद आज के परिपेक्ष्य में क्यों OUTDATED होते जा रहे हैं ?

स्वामी विवेकानंद आज के परिपेक्ष्य में क्यों outdated होते जा रहे हैं ? मेरी बात सुनकर कुछ लोग विरोध करेंगे , कुछ भृकुटि तानेंगें और कुछ मेरी बुद्धि पर लानत देंगे । लेकिन विचारियेगा ज़रूर । एक वाकया है , एक दिन 50 , 60 युवा छात्रों के बीच मैंने जिज्ञासा वश पूछ लिया , कितने छात्रों ने स्वामी विवेकानंद के बारे में पढ़ा है । आपको जानकर आश्चर्य होगा , एक ने भी नहीं पढ़ा था । फिर मैंने पूछा अच्छा जानते तो होंगे , सिर्फ़ 3 हाथ ऊपर उठे । ये जो नई पौध है युवाओं की इन्हें देश की मिट्टी ने नहीं तैयार करा है । इन्हें शायद स्कूल की किताबों में भी नहीं सिखाया गया । इनके अध्यापकों को भी आता होगा । आता भी होगा तो उनकी आजकल सुनता कौन है । स्कूल जाना , फैशन है , स्कूल की पढ़ाई ज़रूरी नहीं क्योंकि exam crack करने की tution अलग है । स्कूल के अध्यापक outdated हैं , स्कूल का curriculum outdated हैं । कॉलेज जाने वाले युवाओं के youth icon और role model फिल्मी हीरो हैं , विवेकानंद तो क़तई नहीं । क्यों ? \"\"
भगवावस्त्र धारण करने वाला , उज्ज्वल राष्ट्र की कल्पना करने वाला , अपनी संस्कृति पर गर्व करने वाला विवेकानंद आज outdated नहीं तो और क्या है ?
ऐसी बातें करते तो लोगों को शर्म आने लगती है । \” अरे यार पका मत ऐसी बातें करके \” शायद ऐसे ही जुमले बोले जाएंगे , उससे जो बोलने की कोशिश भी करेगा ।
क्यों हो गया ऐसा ? हम यदि स्वामी विवेकानंद को भूल गए तो हमें सुद्रढ़ राष्ट्र की कल्पना को भी भूल जाना चाहिए !
जिन युवायों का आह्वान स्वामी जी ने राष्ट्र निर्माण के लिए करा था वही आज उन्हें भुलाये बैठे हैं ।सुनियोजित ढंग से हमें स्वामी विवेकानंद के विचारों से , उनके उद्गारों से दूर रखा गया है । इस दूरी को अब मिटाना होगा ।
अगर किला भेदना हो , तो ताक़त भी वैसी लगानी होती है । जिस भाषा में इन्हें विवेकानंद समझ में आते हों , उन्हें समझाएं । अंग्रेज़ी में भी करना पड़े तो भी । लोहे से लोहा काटना पड़े तो भी चलेगा ।
आजकल मुम्बई , दिल्ली में एक बेहद महँगा , विशाल , वुस्तृत नाटक चल रहा है , \” मुग़ले आज़म \” । house full । क्या खुलूस उर्दू परोसी जा रही है । जितने फैशन के मारे वहां बैठे होंगे , मैं शर्तिया कह सकती हूँ उनमे से आधों को भी समझ नहीं आ रही होगी । 5000 का टिकट लेकर भी लोग वाह वाह कर रहे हैं ।
क्या हम विवेकानंद पर ऐसा कुछ नहीं बना सकते ? विवेकानंद की पब्लिसिटी करने में आखिर समस्या क्या है? महान संजय दत्त पर फ़िल्म बन सकती है तो विवेकानंद पर क्यों नहीं ? फ़िल्म बने तो बेहतरिन कलाकारों के साथ बने , सुंदर चित्रण हो । इसकी marketing भी बढ़िया हो तो भी क्या दिक्कत है ?
अब करना ही होगा । अब समय आ गया है । जिन युवायों को बाजार ने अपना target audeience बनाया है , उन्हें राष्ट्र निर्माण की तरफ मोड़ने के लिए कोई कदम छोटा नहीं होगा । आइये , \”कूल \” विवेकानंद को फिर से \”इन \” कर दें ।

डॉ दिव्या गुप्ता

 

 

 

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