आज हरियाणा के जींद में फिर एक मासूम दरिंदों के हट्टे चढ़ गई अब राजनीति होगी । बयानबाज़ी होगी । दलित और अगड़ों की फिर दुहाई दी जाएगी । सरकार और पुलिस के निक्कमेपन पर फिर उंगली उठाई जाएगी । लेकिन इन सब से क्या वो मासूम वापस आ जायेगी । मरने से पहले उसे जो यातनाएं दी गईं थीं उसका दर्द कितने महसूस करेंगे ? किस बदले के लिए उस मासूम की बलि दी गयी उसका हिसाब कौन देगा ? उसके कपड़ों पर कटाक्ष नहीं होगा ? वो तो पूरे कपड़े पहनने वाली मासूम थी , उसकी शायद यही गलती रही होगी । वो यातनाएं भुगतती हुई मर गयी । हम सिर्फ लिख सकते हैं , हम दांतों तले उंगली दबाते हैं , समाज को दुहाई देतें हैं ,
बलात्कारियों को सख्त से सख्त सजा की मांग करते हैं और फिर अपने अपने कामों में व्यस्त हो जाते हैं ।हमारा खून ठंडा हो गया है । अब हमारी रूह नहीं कांपती । एक लड़की सांस ले रही थी जब उसपर वो वहशी एक के बाद एक यातना कर रहे थे । शायद उसका दिमाग सुन्न हो गया हो , दर्द के मारे शरीर रोना भी थक गया हो , मदद के लिए चीखने की ताकत भी खत्म हो गयी हो पर उन दरिंदों की भूख कम नहीं हुई । इन वहशियों की तुलना जानवरों से बिल्कुल नहीं करी जा सकती , क्योंकि जानवर अपनी हद जानते हैं । अगर उनमें स्त्री जानवर नहीं चाहती तो परुष जानवर उसपर हावी नहीं हो सकता ! लेकिन यह बात इंसानों को समझ नहीं आती । उन्हें \”ना \” सुनना नहीं आता । भाई से , परिवार से , उसी लड़की से बदला लेना हो तो सब से आसान हथियार है , उसपर कूद पड़ो ! लानत है ! वो कौन माँ होगी जिसने ऐसे कपूत जने होंगे ! वो कौन पिता होगा जिसने ऐसे बेटों को शिक्षा दी होगी ? वो कौनसा परिवार , समाज होगा जिन्होंने ये संस्कार डाले होंगें ?
आखिर कब तक हमारी मासूम बेटियों को बलि देनी होगी ? क्यों ? किसलिए ? बस अब बन्द हो ये सब !!!! बन्द हो ये मासूम बेटियों की बलि । बन्द करिए महिला सशक्तिकरण का राग अलापना । जाईये लड़कों को पाठ पढ़ाइये । लड़कियां अपनी हद भी जानती हैं और ताकत भी । जो अपनी हद नहीं जानते और ताकत का गलत इस्तेमाल करते हैं , जाईये उन्हें सिखाईये ! समाज में ऐसे मग़रूर , बत्तमीज़ , बेलगाम लड़कों में नकेल डालने का समय आ गया है !
थर्रा देती हैं ऐसी घटनाएं। बलात्कारियों के साथ-साथ उनके माता-पिता को भी सज़ा मिलनी चाहिए। तर्क दिया जाता है कि अगर फांसी देने से दुष्कर्मी लड़की को मार डालेगा ताकि उसकी पहचान मिलना मुश्किल हो या दरिंदगी की हद पार करने के मकसद से। ठीक है, सज़ा को क़ैद तक ही रखें, लेकिन अकेले दुष्कर्मी के लिए नहीं। उसके पूरे परिवार को सज़ा दी जानी चाहिए। जिस माहौल में रहकर कोई हैवान बनता हो, उस माहौल को ही मिटा देना चाहिए।
और ऐसे परिवारों को जेल में मुफ्त का खाना न मिले। करदाता के पैसों पर ये ऐश नहीं कर सकते। जेल में इनके लिए कड़े से कड़े काम करवाकर, तभी भोजन कमाने देना चाहिए। नहीं हो, तो भूखे रहें। कपड़े भी ख़ुद बनाएं। इन सबको पृथ्वी पर नर्क का अहसास कराया जाए।
doshiyon ko chourahe par fansi di jani chahiye